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हमें बुखार क्यों होता है ? General knowledge (Gk) in Hindi
शरीर के तापमान का सेट-पॉइंट जो हाइपोथैलेमस में लगा था , ऊपर खिसक गया है। यह इशारा है शरीर के कोर के लिए कि तापमान ज़्यादा होना चाहिए , कम है। इसे बढ़ाओ। बढ़ाओ ताकि घुसपैठिये को बढ़ने में , पनपने में दिक़्क़त हो। बढ़ाओ ताकि उसकी वृद्धि के लिए अवरोध उत्पन्न हो। बढ़ाओ , बढ़ाओ , बढ़ाओ।
बुख़ार चढ़ रहा है। जाड़ा लग रहा है : यह बताते हुए कि सेट-पॉइंट ऊँचा है , उस तक शरीर , तुम पहुँचो। इसीलिए दाँत किटकिटा रहे हैं। जबड़े की मांसपेशियाँ भिंच रही हैं। शरीर काँप रहा है। हाथों-पैरों में सिहरन पैदा हो रही है। तन तपने लगा है , चेहरा लाल हो चला है। और फिर ?
पसीना-पसीना-पसीना होकर शरीर कहता है अब बस ! और नहीं ! जितना बढ़ना था ताप , बढ़ चुका मैं। और बढूँगा तो प्रतिक्रिया ज़रूरत से ज़्यादा हो जाएगी। अरे , किसी ने एक थप्पड़ मारा है तो उसकी जान थोड़े ही ले लूँगा ! और जान लेने की कोशिश में अपनी जान जोखिम में थोड़े ही डाल दूँगा ! बुख़ार इसलिए एक हद से ज़्यादा नहीं बढ़ता सकता, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा।
हमें बुखार आने की वजह । General knowledge (Gk) in Hindi
इस बढ़ोत्तरी में केवल शत्रु की हानि होगी , ऐसा कहाँ ज़रूरी है। ताप बढ़ेगा , तो जिस्म की अपनी क्रियाएँ भी प्रभावित होंगी। उनमें भी शिथिलता आएगी। वे भी मन्द पड़ सकती हैं और पड़ती हैं। ये सब बुख़ार के अपने ही पक्ष पर प्रतिकूल प्रभाव हैं।
अस्पताल में बड़ी बीमारी वाले उन लोगों को देखिए जिन्हें रोग के बावजूद बुख़ार नहीं चढ़ रहा। ये बेचारे अभागे हैं : इनके प्रतिरक्षा-तन्त्र ढंग से काम नहीं कर रहे। इनमें से एक बच्चा है , एक बूढ़ा है , एक अनियन्त्रित मधुमेह रोगी है , एक के वृक्क फेल हो चुके हैं। एक का यकृत विकारग्रस्त है। एक एच.आइ.वी. पॉज़िटिव है , उसे एड्स है।
बुख़ार जहाँ नहीं है , वहाँ प्रतिरोध नहीं है। वहाँ दुश्मन का पलड़ा पहले से ही बहुत भारी है।
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